उत्तराखंड में लोकोक्तियों व मुहावरों का बहुत प्रचलन है । आम बातचीत में रस व प्रभाव डालने के लिये इनका प्रयोग किया जाता है । गढवाली भाषा में इन्हें ’औखाण’ बोला जाता है ।
मैं समय-समय पर आपके समक्ष गढवाली औखाणे प्रस्तुत करने का प्रयास करुगाँ ।
इसी श्रृंखला में कुछ औखाणें प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिसमे कुछ मेरी स्वयं की जानकारी से हैं और कुछ अन्य श्रोतो से संग्रहित है ।
- दान आदिम की बात और आँमला कु स्वाद, बाद मा आन्दु ।
- गैथ त म्यार यख भी होन्दी , पर डाली का ६ स्येर यखी सुणी ।
- ब्वे कु दूध पिकतै नि हुवे, त अब बुबा कु घुंडा चुसिक होन्दु ।
- बान्दर का मुंड मा टोपली नि सुवान्दी ।
- मि त्येरा गौं औलू क्या पौलू,तु मेरा गौं औलू क्या ल्यालु ।
- थूका आंसू लगाणा छन, मूता दिवा जगाणा छन ।
- भेल़ लमड्यो त घौर नी आयो, बाघन खायो त घौर नी आयो।
- ढेबरि मरिगे, गू खलैगे।
- नि खांदी ब्वारी , सै-सुर खांदी ।
- भैर तालु, और भितर बिरालु ।
- ब्वारी बुबा लाई बल अर ब्वारी बुबन खाई ।
- जु पदणु गीजि जालो, उ हगणु केकु जालो।
- रांडो नाक जु नि होन्दू त गू भी खै जांदी ।
- झूटा सच्चा पितर, गया जैकी दिखेला।
- कना कना कख गैन, मुसा का छुवरा जवाण हुवेण ।
- होंदा ही ग्यों , त रोंदा ही क्यों ।
- उछलि उछलि मारि फालि, कर्म पर द्वी नाली।
- अकल का टप्पु, सरमा बोझा घोड़ा मां अफु।
- सौण मरि सासू, भादो आयां आंसू।
- जु नि धोलो अफड़ो मुख, उक्या देलो हैका तैं सुख।
- पढ़ाई लिखाई बल जाट, अर १६ दुनी आठ ।
- करमा दु:ख, घ्यू कु साग ।
- सुबेरी मुक धोयुँ और बाबु ब्यों करयूँ काम औंदी ।
- बिरालु मरयूं सबुन देखी, दूध खत्युँ कैन नि देखी ।
- भिंडि बिराल्युं मा मुसा नि मरियेंदन।
- जै गौ जाण ही नी, वे गौं कु बाठु क्या पूछण ।
- मैं राणी, तू राणी, कु कुटलु, चीणा दाणी ।
- पठालु फ़ुटु पर ठकुराण नी उठु
- पढिय़ुं फ़ारसी, बेचणु तेल ।
- जख कुखड़ा नि होन्दा, तख रात नि खुल्दी ?
- तुम्हारा जौं, तुम्हारो जन्द्रौ।
- पौ ना पगार, भजदम हवलदार
- बिगर अफ़ु मरयां, स्वर्ग नि जयेन्दु ।
- मै लगान्दु आगरा की, राडं लगान्दी घागरा की ।
- पैंसा नि पल्ला, दुई ब्यो कल्ला ।
- पिली त अपनी बाणी, नितर लाता की बाणी सही ।
- तिम्लेया तिम्ली खत्येणी, नांगियां नांगी दिख्येणी ।
- कख उमड़े कख बरखें।
- जुलखी धुई, घिच्ची उई ।
- एक कुंडी माछा, नौ कुंडी झोल ।
- गोणी अपड़ु पुछ छोटु ही दिख्येन्दु ।
- सासु बोल्दी बेटी कू , सुणान्दी ब्वारी कू ।
- अफ़ड़ु मुंड, अफ़ु नि मुंड्येन्द ।
- लुखु की साटि बिसैंई, म्यारा चौंल बिसैंई ।
- हैका देखी लैरी पैरी, अफड़ि देखि नांगी , म्यारा बाबु की मत्ति गये, मीकु स्ये नि मांगी।
8 comments:
बढिया प्रयास है लगे रहिये
अगर आप इसका हिन्दी अनुवाद भी साथ साथ देते तो ज्यादा अच्छा होता
बहुत अच्छा एवं उपयोगी प्रयास. कृपया हिन्दी में अर्थ भी देते जायें -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??
हरिमोहन जी व शास्त्री जी आप लोगों का धन्यवाद ।
शास्त्री आप सही कह रहे हैं हमे हिन्दी को अंग्रेजी से आगे लाना है ।
Bahut Badiya Prayash chha Sandeep Ji. Keep good work!
धन्यवाद अरुण जी ।
बहुत शानदार प्रयास है। क्र्पया बनाये रख्खे।
धन्यवाद।
राजीव
मै रमेश सिह कैंतुरा नाभा पंजाब से इस परयास का सवागत करता हूं!
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