Wednesday, November 21, 2007

गढवाली लोकोक्तियाँ व मुहावरें (औखाण): भाग-१

उत्तराखंड में लोकोक्तियों व मुहावरों का बहुत प्रचलन है । आम बातचीत में रस व प्रभाव डालने के लिये इनका प्रयोग किया जाता है । गढवाली भाषा में इन्हें ’औखाण’ बोला जाता है ।

मैं समय-समय पर आपके समक्ष गढवाली औखाणे प्रस्तुत करने का प्रयास करुगाँ ।
इसी श्रृंखला में कुछ औखाणें प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिसमे कुछ मेरी स्वयं की जानकारी से हैं और कुछ अन्य श्रोतो से संग्रहित है ।



  • दान आदिम की बात और आँमला कु स्वाद, बाद मा आन्दु ।

  • गैथ त म्यार यख भी होन्दी , पर डाली का ६ स्येर यखी सुणी ।

  • ब्वे कु दूध पिकतै नि हुवे, त अब बुबा कु घुंडा चुसिक होन्दु ।

  • बान्दर का मुंड मा टोपली नि सुवान्दी ।

  • मि त्येरा गौं औलू क्या पौलू,तु मेरा गौं औलू क्या ल्यालु ।

  • थूका आंसू लगाणा छन, मूता दिवा जगाणा छन ।

  • भेल़ लमड्यो त घौर नी आयो, बाघन खायो त घौर नी आयो।

  • ढेबरि मरिगे, गू खलैगे।

  • नि खांदी ब्वारी , सै-सुर खांदी ।

  • भैर तालु, और भितर बिरालु ।

  • ब्वारी बुबा लाई बल अर ब्वारी बुबन खाई ।

  • जु पदणु गीजि जालो, उ हगणु केकु जालो।

  • रांडो नाक जु नि होन्दू त गू भी खै जांदी ।

  • झूटा सच्चा पितर, गया जैकी दिखेला।

  • कना कना कख गैन, मुसा का छुवरा जवाण हुवेण ।

  • होंदा ही ग्यों , त रोंदा ही क्यों ।

  • उछलि उछलि मारि फालि, कर्म पर द्वी नाली।

  • अकल का टप्पु, सरमा बोझा घोड़ा मां अफु।

  • सौण मरि सासू, भादो आयां आंसू।

  • जु नि धोलो अफड़ो मुख, उक्या देलो हैका तैं सुख।

  • पढ़ाई लिखाई बल जाट, अर १६ दुनी आठ ।

  • करमा दु:ख, घ्यू कु साग ।

  • सुबेरी मुक धोयुँ और बाबु ब्यों करयूँ काम औंदी ।

  • बिरालु मरयूं सबुन देखी, दूध खत्युँ कैन नि देखी ।

  • भिंडि बिराल्युं मा मुसा नि मरियेंदन।

  • जै गौ जाण ही नी, वे गौं कु बाठु क्या पूछण ।

  • मैं राणी, तू राणी, कु कुटलु, चीणा दाणी ।

  • पठालु फ़ुटु पर ठकुराण नी उठु

  • पढिय़ुं फ़ारसी, बेचणु तेल ।

  • जख कुखड़ा नि होन्दा, तख रात नि खुल्दी ?

  • तुम्हारा जौं, तुम्हारो जन्द्रौ।

  • पौ ना पगार, भजदम हवलदार

  • बिगर अफ़ु मरयां, स्वर्ग नि जयेन्दु ।

  • मै लगान्दु आगरा की, राडं लगान्दी घागरा की ।

  • पैंसा नि पल्ला, दुई ब्यो कल्ला ।

  • पिली त अपनी बाणी, नितर लाता की बाणी सही ।

  • तिम्लेया तिम्ली खत्येणी, नांगियां नांगी दिख्येणी ।

  • कख उमड़े कख बरखें।

  • जुलखी धुई, घिच्ची उई ।

  • एक कुंडी माछा, नौ कुंडी झोल ।

  • गोणी अपड़ु पुछ छोटु ही दिख्येन्दु ।

  • सासु बोल्दी बेटी कू , सुणान्दी ब्वारी कू ।

  • अफ़ड़ु मुंड, अफ़ु नि मुंड्येन्द ।


  • लुखु की साटि बिसैंई, म्यारा चौंल बिसैंई ।

  • हैका देखी लैरी पैरी, अफड़ि देखि नांगी , म्यारा बाबु की मत्ति गये, मीकु स्ये नि मांगी।



8 comments:

हरिमोहन सिंह said...

बढिया प्रयास है लगे रहिये

हरिमोहन सिंह said...

अगर आप इसका हिन्‍दी अनुवाद भी साथ साथ देते तो ज्‍यादा अच्‍छा होता

Shastri JC Philip said...

बहुत अच्छा एवं उपयोगी प्रयास. कृपया हिन्दी में अर्थ भी देते जायें -- शास्त्री

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??

सन्दीप काला said...

हरिमोहन जी व शास्त्री जी आप लोगों का धन्यवाद ।
शास्त्री आप सही कह रहे हैं हमे हिन्दी को अंग्रेजी से आगे लाना है ।

Unknown said...

Bahut Badiya Prayash chha Sandeep Ji. Keep good work!

सन्दीप काला said...

धन्यवाद अरुण जी ।

Raj said...

बहुत शानदार प्रयास है। क्र्पया बनाये रख्खे।
धन्यवाद।
राजीव

Anonymous said...

मै रमेश सिह कैंतुरा नाभा पंजाब से इस परयास का सवागत करता हूं!