Monday, December 17, 2007

गढवाली लोकोक्तियाँ व मुहावरें (औखाण) : भाग-३

इसी श्रृंखला में कुछ और गढवाली औखाणे लेकर आपके समक्ष प्रस्तुत हुआ हूँ ।

  • धुये धुये की ग्वरा, अर लगै लगै की स्वरा नि होन्दा ।

  • कौजाला पाणी मा छाया नि आन्दी ।

  • अपड़ा लाटा की साणी अफु बिग्येन्दी ।

  • बड़ी पुज्यायी का भी चार भांडा, छोटी पुज्यायी का भी चार भांडा ।

  • अपड़ा गोरुं का पैणा सींग भी भला लगदां ।

  • साग बिगाड़ी माण न, गौं बिगाड़ी रांड न ।

  • कोड़ी कु शरील प्यारु, औंता कु धन प्यारु ।

  • जन त्येरु बजणु, तन मेरु नाचणु ।

  • ना गोरी भली ना स्वाली ।

  • राजौं का घौर मोतियुं कु अकाल ।

  • जख मिली घलकी, उखी ढलकी ।

  • भैंसा का घिच्चा फ्योली कु फूल ।

  • सब दिन चंगु, त्योहार कु दिन नंगु ।

  • त्येरु लुकणु छुटी, म्यरु भुकण छुटी ।

  • कुक्कूर मा कपास और बांदर मा नरियूल

  • सारी ढेबरी मुंडी मांडी, अर पुछ्ड़ी दाँ न्याउँ (म्याउँ) ।

1 comment:

pankaj gusain(p.k) said...

sandeep bhaut achaa prayash hai hamari shubh kamnayen apke sath hai